दोस्तों आपने गौर किया होगा कि बाजार में मिलने वाली ज्यादातर चीजों पर made in china लिखा होता है इसका मतलब यह है कि वह चीज चीन के अंदर बनाई गई है और वहां से निर्यात करके हमारे देश में बेची जा रही है और सिर्फ हमारे देश में ही नहीं बल्कि पूरी दुनिया में ही चीन के यह सामान इसी तरह से बेचे जाते हैं।
बच्चों के छोटे-छोटे खिलौनो से लेकर बड़ी-बड़ी मशीनों के हिस्से तक सब कुछ चीन के अंदर ही बनाया जाता है और बेहद सस्ता होने के नाते पूरी दुनिया चीन के इन सामानों को खरीदती है. यही कारण है कि आज चीन पूरी दुनिया के लिए एक मैन्युफैक्चरिंग कंपनी बन चुका है अब ऐसे में लोगों के मन में यह सवाल आते हैं कि आखिर चीन इस मुकाम पर पहुंचने में कामयाब कैसे हुआ? और क्या आने वाले समय में कोई और देश चीन कि यह जगह ले पाएगा अब अगर आप भी इन सवालों के जवाब जानना चाहते हैं तो इस पोस्ट को अंत तक जरूर पढ़िए।
क्योंकि आज की इस पोस्ट में हम आपको यह भी बताने वाले हैं कि किस तरह से पूरी दुनिया की चीजों की कॉपी बनाकर चीन आज हर जगह पर राज कर रहा है। दोस्तों जब साल 2020 की शुरुआत में जब कोरोनावायरस फैलना शुरू हुआ तो इसका असर पूरी दुनिया पर पड़ा क्योंकि दुनिया भर के सभी देशों ने लोक डाउन लगाने शुरू कर दिए थे और इस लिस्ट में चीन का नाम भी शामिल था चीन के अंदर जब लॉकडाउन लगाया गया तो वहां से चीजों का निर्यात बंद हो गया और चीन का निर्यात बंद होने से दुनिया भर के कंपनियों का प्रोडक्शन थम सा गया क्योंकि ज्यादातर प्रोडक्ट्स में इस्तेमाल किए जाने वाले कुछ पार्ट चाइना में ही बनते थे.
और कोरोना काल में लोगों को यह समझ में आ गया था कि वह चीन के ऊपर निर्भर हो चुके हैं और इसी वजह से चीन को द वर्ल्ड फैक्ट्री का नाम दिया गया. दरअसल दुनिया चीन से उसका सामान इसलिए खरीदती है क्योंकि चीन वह सामान बहुत ही सस्ता देता है यहां तक कि चीन से एक्सपोर्ट की गई चीजों पर कई तरह के Tax भी लगाए जाते हैं लेकिन इसके बावजूद अगर वही सामान अपने देश में बनाया जाए तब भी यह काफी ज्यादा महंगे पड़ते हैं और यही वजह है कि दुनियाभर की कंपनियां चीन सेे ही सामान खरीदना पसंद करती हैं।
अब ऐसे में यह सवाल उठता है कि आखिर चीन इन सभी चीजों को इतना सस्ता बनाते कैसे हैं दरअसल इसके पीछे कोई एक नहीं बल्कि कई सारे अलग-अलग कारण है जैसा कि आप सभी लोग जानते ही होंगे की जनसंख्या के मामले में चीन दुनिया का सबसे बड़ा देश है और इस समय चीन की कुल जनसंख्या 145 करोड़ के आसपास है और जनसंख्या इतनी ज्यादा होने की वजह से चीन में मजदूरों की भी कोई कमी नहीं है वहां पर मजदूरों की संख्या हमेशा से ही आवश्यकता से ज्यादा रहती है और यही वजह है कि चीन में मजदूर बहुत ही ज्यादा सस्ते मिल जाते हैं और यह चीन के सामान सस्ते होने का सबसे अहम कारणों में से एक है।
इसके अलावा चीन जनसंख्या के मामले में ही सबसे बड़ा देश नहीं है बल्कि एरिया के हिसाब से भी यह दुनिया का चौथा सबसे बड़ा देश है आपके अंदाजे के लिए आपको बता दें की एरिया के हिसाब से चीन हमारे भारत से लगभग 3 गुना ज्यादा बड़ा है. यानी कि चीन के पास बड़ी-बड़ी फैक्ट्रियां और मैन्युफैक्चरिंग प्लांट लगाने के लिए जगह की कोई कमी नहीं है इसके अलावा वहां पर मैन्युफैक्चरिंग के लिए रॉ मैटेरियल यानी कि कच्चा माल भी बहुत ही आसानी से उपलब्ध हो जाता है।
साथ ही वहां की सरकार ने पर्यावरण को लेकर नियमों में काफी ढील दे रखी है जिससे कि पेड़ों को काटने और फैक्ट्री लगाने में ज्यादा समस्या का सामना नहीं करना पड़ता है और यह सभी चीजें ना सिर्फ चीन को सस्ता माल बनाने में मदद करती है बल्कि उसको दुनिया का मैन्युफैक्चरिंग हब भी बनाती है। हालांकि दोस्तों चलिए अब हम जानते हैं की चीन के मैन्युफैक्चरिंग हब बनने की शुरुआत कब और किस तरह से हुई. वैसे अगर देखा जाए तो 1960 से पहले तक चीन की हालत बहुत ही ज्यादा खस्ता हुआ करती थी और वहां के ज्यादातर लोग जैसे-तैसे अपना जीवन गुजार रहे थे।
लेकिन फिर वहां की सरकार ने बहुत बड़े पैमाने पर स्टील मैन्युफैक्चरिंग का काम शुरू कर दिया और फिर अनाज के अलावा चीन ने पहली बार भारी मात्रा में दुनिया के अंदर स्टील एक्सपोर्ट की थी यहां से अब इस डील को फाइनल करने के बाद से चीन यह समझ गया था कि अगर उसे अपने देश की गरीबी को खत्म करना है तो फिर उसे दूसरी चीजों की मैन्युफैक्चरिंग भी शुरू करनी होगी और फिर इसके लिए चीन ने बड़ी-बड़ी विदेशी कंपनियों को अपने देश में आने का न्योता देना शुरू कर दिया.
चीन ने विदेशी कंपनियों को यह प्रस्ताव दिया कि अगर कंपनियां उनके देश में आती हैं तो वे उन्हें सस्ता राँ मैटेरियल, प्लांट लगाने के लिए जगह और हद से भी ज्यादा सस्ते में उन्हें मजदूर उपलब्ध कराएंगे. अब एक आंकड़े के अनुसार अगर इसे देखा जाए तो 1980 में चीन के एक वर्कर का सालाना वेतन एक अमेरिकी वर्कर के 40 से 50 गुना तक कम हुआ करता था। इसके अलावा चीन की सरकार ने विदेशी कंपनियों के लिए Tax के नियमों में भी काफी छूट दे रखी थी.
अब सस्ता रां मैटेरियल, सस्ते मजदूर और ना के बराबर tax हो तो कोई कंपनी भला कैसे इसे छोड़ सकती है कंपनियों के लिए यह एक मोटा मुनाफा कमाने का बहुत बड़ा सुनहरा मौका था यानी कि कंपनियों को सिर्फ इतना करना था कि उन्हें चीन में जाकर अपना ऑफिस बनाकर चीन के मजदूरों को अपनी टेक्नोलॉजी के ऊपर काम करने का तरीका सिखाना था और फिर इसके बाद से तो उनकी बल्ले बल्ले थी और फिर इसी लालच में ही बहुत सी बड़ी-बड़ी विदेशी कंपनियां जिनके अंदर आने लगी।
जो कि अब चीन के लोगों के पास फैक्ट्री में काम करने के अलावा रोजगार के कोई और बहुत ज्यादा अवसर नहीं थे इसलिए वह किसी भी वेतन पर काम करने के लिए तैयार रहते थे अब ज्यादा मुनाफा कमाने के लालच में दुनिया के हर एक कोने से बहुत सारी कंपनियां चीन के अंदर आने लगी और इस तरह से देखते ही देखते कुछ ही सालों में चीन पूरी दुनिया का मैन्युफैक्चरिंग हब बन गया. हालांकि यहां पर चीन ने यह चालाकी दिखाई कि विदेशी कंपनियों की टेक्नोलॉजी और काम करने के तरीकों को सीख कर वह उन्हीं के सामान को कॉपी करके बनाने लगा।
यानी कि चीन में जो भी कंपनियां अपने प्रोडक्ट के मैन्युफैक्चरिंग के लिए वहां आती थी उसी प्रोडक्ट की टेक्नोलॉजी और तरीकों को चुराकर चीन उस सामान की डुप्लीकेट कॉपी बनाना शुरु कर देता था और वह इन सस्ते और डुप्लीकेट प्रोडक्ट्स को गरीब देशों में बेच करके ढेर सारा पैसा कमाता गया और दोस्तों चीन में डुप्लीकेट सामान बनाने का धंधा आज भी काफी जोरों शोरों से चल रहा है।
अब दोस्तों यह सवाल उठता है कि क्या आगे भी चीन दुनिया का इसी तरह से मैन्युफैक्चरिंग हब बना रहेगा या फिर आने वाले समय में उसकी जगह कोई दूसरा देश ले लेगा तो दोस्तों इस साल चीन में कोरोना महामारी फैलने की वजह से बड़ी-बड़ी कंपनियों का प्रोडक्शन पूरी तरीके से बंद हो गया था तब उन्हें एहसास हुआ कि वे चीन पर किस हद तक निर्भर हो चुके हैं और इसने सभी कंपनियों को चेतावनी दे दी थी की किसी भी एक देश पर इतना निर्भर होना बिल्कुल भी अच्छी बात नहीं है।
इसलिए बहुत सी कंपनियां दूसरे देशों में भी अवसर तलाश रही है इसके अलावा चीन के अंदर अब मजदूरी भी पहले की तरह सस्ती नहीं रही है क्योंकि चीन के नई पीढ़ी के पढ़े-लिखे लोग मजदूरी वाले काम करना पसंद नहीं कर रहे हैं जिसकी वजह से चीन में मजदूरों की संख्या लगातार कम हो रही है और संख्या कम होने की वजह से मजदूरों का वेतन काफी ज्यादा बढ़ चुका है और अब इन वजह हो से भी कंपनियां चीन को छोड़कर दूसरे देशों जैसे कि वियतनाम मलेशिया थाईलैंड और भारत की तरफ अपना रुख कर रही हैं.
हालांकि भारत को अगर दुनिया का मैन्युफैक्चरिंग हब बनना है तो सबसे पहले हमारी सरकार को ऐसे विदेशी नियम लेकर आने होंगे जो कि विदेशी कंपनियों को भारत में आने पर मजबूर कर दे हालांकि यह नियम और शर्तें चीन की तरह पैसा कमाने के लिए ना हो क्योंकि हम भारतीय पर्यावरण को नुकसान होते हुए नहीं देख सकते हैं और साथ ही नियम कानून भी देश के लोगों के हितों को ध्यान में रखकर ही बनाए जाने चाहिए हालांकि यह काफी अच्छा मौका भी है भारत के लिए दुनिया का मैन्युफैक्चरिंग हब बनने का क्योंकि इस समय कंपनियां चीन से निकलकर अपने लिए जगह तलाश रही हैं।
हम उम्मीद करते हैं आपको हमारी आज की दी गई सभी जानकारी जरूर ही पसंद आई होगी अब इसी तरह की और भी मजेदार Amazing facts in Hindi के बारे में जानने के लिए हमें कमेंट जरुर करें.