पिछले 100 साल से हम यह सुनते आ रहे हैं कि Titanic एक आइसबर्ग से टकराया था लेकिन जरा आप ही सोचिए इस जहाज को बनाने में 26 महीनों की मेहनत लगी थी और उस जमाने की हर वह टेक्नोलॉजी जो कि उस वक्त सबसे उम्दा मानी जाती थी वह इस जहाज को बनाने में इस्तेमाल की गई थी. तो फिर कैसे सिर्फ एक आइसबर्ग के टकराने से Titanic डूब गई।
रिसर्च में पाया गया है की टाइटैनिक के डूबने का असली कारण वह आइसबर्ग नहीं बल्कि टाइटैनिक के बेस में लगी एक आग थी जी हां दोस्तों जब Titanic ने जमीन को समंदर पार करने के लिए छोड़ा भी नहीं था तब से ही यह आग उसके बेस लेवल में भड़क रही थी. इसका जीता जागता सबूत है टाइटैनिक के चलने से पहले लिए गए कुछ तस्वीरें जिसमें एक बड़ा सा काला धब्बा जहाज के निचले हिस्से में दिखाई दे रहा है।
ऐसा धब्बा केवल एक आग के कारण ही वहां हो सकता है जब एक पत्रकार ने इस धब्बे को देखा तो उसने इसके ऊपर और ज्यादा अध्ययन किया जिसके बाद पता चला की यह सच में एक आग थी और यह आग इतनी विशाल और गर्म थी कि इसने टाइटैनिक के ऊपरी हिस्से पर एक बड़ा धब्बा बना दिया था. उस पत्रकार का कहना है कि इतनी गंभीर आग ने टाइटैनिक के बेस में लगी मेटल को 75% कमजोर कर दिया था और इत्तेफाक से Titanic भी उस आइसबर्ग से वही टकराई जहां वह आग लगी थी।
उस जगह पर मेटल कमजोर हो जाने के कारण ही वह आइसबर्ग टाइटेनिक में एक बड़ा छेद करने में सक्षम हो पाया जिससे कि टाइटेनिक डूब गई. जबकि सबको चौंका देने वाली बात तो यह है कि जो लोग टाइटैनिक के प्रोजेक्ट में शामिल थे उन्हें इस आग के बारे में पता था वे जानते थे कि इस आग के कारण टाइटेनिक में उपस्थित लोगों की जान को खतरा हो सकता है लेकिन जब तक उन्हें इस आग का पता चला तब तक टाइटैनिक के सारे टिकट बिक चुकी थी और उस दिन चलने वाली हर दूसरी जहाज को रद्द कर दिया गया था।
यही नहीं अगर अब टाइटैनिक ना चलती तो टाइटैनिक के मालिक कंपनी को बहुत बड़ा नुकसान होता इसीलिए अधिकारियों ने अपना मुंह बंद रखना ही सही समझा और यात्रियों को इस आग का पता ना चले इसके लिए उन्होंने टाइटेनिक को थोड़ा मोड़ कर खड़ा कर दिया ताकि आग वाला काला धब्बा उन यात्रियों को ना दिखे लेकिन इस आग के अलावा भी बहुत सारी ऐसी चीजें थी और बहुत सी ऐसी घटनाएं थी जो अगर ना होती तो शायद Titanic ना डूबती।
साथ मै इतने सारे मासूम लोगों की जान भी नहीं जाती सबसे बड़ी लापरवाही और बदकिस्मती की बात थी बेना कूलर का ना होना हर जहाज पर कुछ लोग चौकन्ना खड़े रहते हैं और जैसे ही उन्हें दूर कोई खतरा नजर आता है तो वह जहाज के कप्तान को और जहाज चलाने वाले अधिकारी को चेतावनी दे देते हैं लेकिन टाइटेनिक पर ऐसा ना हो सका। Titanic पर भी विना कूलर थे लेकिन वह अफसरों के पास होने की बजाय किसी तिजोरी में बंद थे।
इस तिजोरी की चाबी डेविड ब्लेयर नाम के एक अधिकारी के पास थी जिसको अंतिम समय में बदल दिया गया था और दुर्भाग्यवश ब्लेयर उस तिजोरी की चाबी अधिकारियों को देना भूल गए थे और यह बात टाइटैनिक के चलने के 3 दिन बाद बाहर आई थी। अगर यह उपकरण उस रात मौजूद होते तो अधिकारी पहले ही उस आइसबर्ग देख लेते और यह पूरी दुर्घटना होने से बच सकते थे।
इन उपकरणों का ना तो एक दुर्भाग्य वाली बात थी लेकिन जहाज चलाने वाले अधिकारी विक्टर और पैनिक का भी एक हाथ था जब जहाज को संभालने वाले अधिकारी रोबट को आइस बर्ग की खबर मिली. तो घबराहट के मारे उन्होंने जहाज को दूसरी दिशा में मोड़ दिया उस वक्त यह कन्फ्यूजन इस वजह से भी हुआ होगा क्योंकि उस जमाने में जहाज चलाने के 2 तरीके होते थे। 1. Tillen Order और 2. Rudder Order टेलीन ऑर्डर के अनुसार एक जहाज को एक तरफ मोड़ने के लिए स्टेरिंग व्हील को दूसरी तरफ मोड़ा जाता था।
जबकि रेडर आर्डर में ठीक इसका उल्टा होता था टाइटेनिक जहाज टिलन आर्डर में चलता था जबकि अधिकारी ने इसको उल्टा समझ कर के गलत तरफ मोड़ दिया और आइसबर्ग से दूर जाने की बजाए जहाज सीधा उससे टकरा गई इसके बाद टाइटेनिक को तो डूबना ही था लेकिन शायद कुछ और चीजों का अगर ध्यान रखा गया होता तो शायद उस रात इतने लोगों की जाने नहीं जाती। Titanic पर लोगों को बचाने के लिए कम से कम 60 छोटी नाव होनी चाहिए थी.
लेकिन टाइटैनिक के बिल्डर ने केवल 48 ही नाव बनाए थे और इसके बाद भी स्पॉन्सर्स के कहने पर केवल 20 Life Boats टाइटेनिक पर रखे गए क्योंकि 48 Life Boats के कारण डेक अच्छा नहीं लग रहा था. हर जहाज पर एक emergency drill कराई जाती है जिसमें यात्रियों को लाइफगार्ड पहनना और स्टाफ को Life Boats पानी में उतारना और लोगों को उसमें बिठाना सिखाया जाता है यह ड्रिल उसी दिन होने वाली थी जिस दिन Titanic डूबी थी.
लेकिन कैप्टन ने इस ड्रिल को रद्द कर दिया था और वह ड्रिल कभी हुई ही नहीं कोई नहीं जानता क्यों ? इसी कारण Life Boats को जहाज से उतारने में 10 मिनट के बजाय 30 मिनट से भी ज्यादा का समय लग गया था. यही नहीं जब Life Boats पर लोगों को बैठाया जाने लगा था तो शुरू में सीटिंग अरेंजमेंट में भी बहुत लापरवाही की गई थी हर Life Boats मैं 65 सीटें थी इसके बावजूद पानी में उतारी गई पहली Life Boat में भी केवल 27 लोग ही बैठाए गए।
इन छोटी-छोटी लापरवाहीयों के कारण 15 100 से ज्यादा लोगों की बहुत ही दर्दनाक मौत हुई कहते हैं ना कि बूंद बूंद से सागर बनता है जैसे जहाज के निचले हिस्से में आग का लगना, जहाज पर Life Boats का ना होना, जहाज पर सुरक्षाकर्मियों का तैनात ना होना, जहाज के बारे में लोगों को पूरी जानकारी ना होना और ड्रिल का कैंसिल हो जाना समुद्र में तैरता वह आइस बर्ग, जहाज मोड़ थे वक्त करी गई वह छोटी सी गलती और लोगों को बचाने में अधिकारियों के द्वारा करी गई गलतियां यह सारी छोटी छोटी चीजें ही थी जिन्होंने मिलकर एक बहुत बड़ी दुर्घटना को अंजाम दिया.
एक ऐसी भयानक घटना जो कि शायद इतनी भयानक ना होती अगर उन छोटी घटनाओं में से एक भी ना हुई होती तो शायद सभी लोगों की जान बचाई जा सकती थी। आपको आज की यह जानकारी कैसी लगी हमें कमेंट करके जरूर बताएं।